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भारतीय बैंकों का इतिहास और बैंकों के राष्ट्रीयकरण ।

nationalization of indian banks
Nationalization of Indian Banks

ऐतिहासिक पृष्टभूमि (Historical Background)

भारतीयों द्वारा प्रबंधित  सीमित दायित्व का प्रथम भारतीय बैंक अवध कामर्शियल बैंक था जिसे 1881 में स्थापित किया गया। उसक बाद 1894 में पंजाब नेशनल बैंक स्थापित किया गया। 
1905 में स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत हुई। जिसमें कामर्शियल बैंकों को बनाने कं लिए प्रोत्साहित किया गया। 1918-17 के  दौरान बैंकिग मंदी आयी जिससे कि कई राज्यों में कई  तरह के  लगभग 588 वैंक बंद हो  गये जिस वजह से 1949 के  दशक में कामर्शियल बैकों को नियंत्रित करने कं लिए कुछ रेगुलेशन एक्ट की जरूरत पडी। 
बैंकिग कंपनी एक्ट फरवरी 1949 में पास हुआ जिसे बैर्किग रेगुलेशन एक्ट, 1949 के  नाम से जाना जाता है। यह एक्ट आरबीआई को बैंकों को नियंत्रित करने कं लिए वैध जरिया प्रदान करता है।
इम्पीरियल  बैंक आँफ इण्डिया जिसका राष्ट्रीयकरण  1955 में स्टेट बैंक आँफ इंडिया  के  रूप में किया गया। जिसके  1959 तक 8 सहयोगी बैंक थे परन्तु वर्तमान में इसक 5 सहयोगी वैंक है। 1 जनवरी 1953 को बैंक आँफ बीकानेर को बैंक आँफ जयपुर में मिला दिया गया जिससे एक नया वैंक स्टेट बैंक आँफ बीकानेर और जयपुर बन गया। 
 2008 में स्टेट वैंक आँफ सौराष्ट्र को एसबीआई में मिला दिया गया । 2010  में स्टेट वैंक आँफ इंदौर को एसबीआई में मिला दिया गया। 
19 जुलाई 1969 में  भारत  के  14 बड़े बैंकों को आर्थिक विकास एवं सामाजिक विकास की मुख्य धारा से  जोडा गया और भारत सरकार के  आँर्डिनेंश के  साथ इनका राष्ट्रीयकरण  कर दिया गया एवं 5 और बैंकों का 15 अप्रैल 1980  को रारुट्रीयकरण कर दिया गया।

बैंक का अर्थ -

बैंक एक वेध संगठन है जो जमा स्वीकार काटता और उसे मांग पर वापस कर सकता है। यह व्यक्तियों और व्यापारिक धारकों को पैसा उधार भी देता है। 

बैंकों की भूमिका -

बैंक व्यक्तियों की व्यविगत जरूरतों के लिए धन प्रदान करते हैं। ये देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । चलिए हम वैंक की भूमिका के बारे में पता करते हैं।
(1) यह लोगों के बीच बचत को प्रोत्साहित करता है और इस तरह उत्पादक उपयोग के लिए धन उपलब्ध कराता है।
(2) ऐसे लोग जिनके पास अधिशेष होता है तथा ऐसे लोग जिन्हें विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों के लिए धन की आवश्यकता होती है उनक बीच मध्यस्थ के रूप में कार्यं करता है।
(3) यह मुद्रा के बजाय चेक के द्वारा प्राप्ति और भुगतान के माध्यम से व्यापर में लेनदेन की सुबिधा प्रदान करता है।
(4) यह अल्पकालिक और विभिन्न उददेएयों के लिए व्यवसायिकों को ऋण और अग्रिम प्रदान करता है।
(5) यह आयात निर्यात लेनदेन की सुविधा भी प्रदान करता है।
(6) यह किसानों , लघु उद्योगों और स्व रोजगार में लगे लोगों के साथ ही साथ देश में संतुलित आर्थिक विकास के नेतृत्व वाले बडे व्यापारिक धारकों को ऋण उपलब्ध कराकर राष्ट्रीय विकास में सहायता करता है।
(7) यह उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं, मकान, आँठोमोबाईल आदि की खरीद के लिए ऋण उपलब्ध कराकर लोगों क जीवन स्तर को ऊपर उठाने में मदद करता है। 

बैंकों के प्रकार -

कृषि, व्यापार, व्यवसाय में लगे विभिन्न श्रेणियों के  लोगों की वित्तीय  जरूरतों को पूरा करने के  लिए हमारे देश में विभिन्न प्रकार के  बैंक कार्यं करते  हैं।
कार्यों के  आधार पर, भारत में बैंकिग व्यवस्था  (Banking System)  को निम्म प्रकार से विभाजित किया जा सकता है -
1. केंद्रीय बैक (भारत में आरबीआई)  (Central Bank , In India RBI)
2. वाणिज्यिक बैंक (Commercial Bank)
(a) सार्वजनिक क्षेत्र कं बैंक (Public Sector Bank)
(b) निजी  क्षेत्र के  बैक  (Private Sector Bank)
(c) विदेशी  बैंक (Foreign Bank)
3. विकाश बैंक (Development Bank - IFCI , SFC)
4. सहकारी बैंक (Cooperative Bank )
(a) प्राथमिक सहकारी समिति (Primary co-operative society)
(b) केंद्रीय सहकारी बैंक (Central co-operative bank)
(c) राज्य सहकारी बैंक (State co-operative bank)
5. विशेषीकृत बैंक - एक्ज़िम बैंक, सिडबी बैंक, नबार्ड (Cooperative Bank- Exim Bank ,SIDBI Bank , NABARD )

नोट - सभी बैंकों के बारें में बिस्तार से जानने के लिए कृपया नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करे और साथ ही हमें अपने सुझाव कमेंट बोक्स  में जरूर दे -
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