मुद्रास्फीति (Inflation) क्या है इसके कारण व प्रभाव।
Inflation kya Hai |
मुद्रास्फीति की परिभाषा (Definition of inflation)
मुद्रास्फीति को वस्तुओं एवं सेवाओं की सामान्य कीमत स्तर में सतत् व स्थायी वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाता है तथा इसका मापन प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के रूप में किया जाता है। मुद्रास्फीति बढ़ने पर, रुपये की वस्तु एवं सेवाओं को खऱीदने की क्षमता घट जाती है। मुद्रास्फीति के दौरान रुपये का मान रिथर नहीं रहता है। रुपये का मूल्य क्रय शक्ति की क्षमता के आधार पर मापा जाता है, अर्थात् वास्तविक भौतिक वस्तुये जिसे मुद्रा खरीद सकती है। मुद्रा स्फीति बढने पर रुपये की क्रय शक्ति घट जाती है। उदाहरण के तोर पर यदि मुद्रास्फीति की दर 2% वार्षिक है, तो सैद्धांतिक रूप से 10 रुपये का गोंद एक वर्ष बाद 10.2 रुपये का होगा। मुद्रास्फीति के बाद आपका रुपया उतनी वस्तुयें नहीं खरीद सकता जितनी वह पहले खरीद सकता था।मुद्रास्फीति से संबंधित शब्दावली-
मुद्रा अवस्फीति मूल्य स्तर के गिरने की वह अवस्था है जो उस समय उत्पन्न होती है जबकि वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादक मौद्रिक आय की तुलना में अटि भक तेजी से वढ़ता है।
अधिस्फीति (Hyper inflation)
मुद्रास्फीति यदि अत्यधिक तीव्र अथवा अनियंत्रित स्तर को प्राप्त कर ले तो अधिस्फीति कहलाती है. अघिस्फीति की कोई मात्रात्मक माप नहीं है, यह एक गुणात्मक अवधारणा है। अधिस्फीति उस अवस्था को कहते है जहाँ मूल्यवृद्धि इतनी अधिक होगी कि मुद्रास्फीति द्वारा परिभाषित नहीं होगी।
स्टैगफ्लेशन (Stagflation)
ऐसी स्थिति जिसमें मुद्रास्फीति तथा मन्दी (जव दो लगातार वित्तीय वर्ष तक विकास दर में गिरावट या विषमता देखी जाए) दोनों की स्थिति साथ…साथ वनी रहे उसे स्टैग फ्लेशन कहते हैं। इस स्थिति मे आर्थिक वृद्धि दर कीमत बढने की दर से धीमी होगी।
मुद्रास्फीति+मंदी = स्टैगफ्लेशन
डिसइनफ्लेशन(Disinflection)
जब मूल्य मुद्रा स्फीति की दर में गिरावट हो। यदि मुद्रा स्फीति की दर किसी भी अर्थव्यावस्था में एक वास्तविक समय में कम आँकी जाये तो ऐंसी स्थिति को डिसइनफ्लेसन कहलाती है।
पुनः मुद्रास्फीति (Re-inflation)
जब एक अर्थव्यवस्था डिफ्लेशन से इनफ्लेशन की ओर बढ़ती है तो इस स्थिति को पुनः मुद्रास्फीति या Re-inflation कहते है।
मुद्रास्फीति के चरण-
लक्षण एवं तीव्रता के आधार पर, मुद्रास्फीति के कई चरण हो सकते हैं जैसे
1. रेंगती हुइ मुद्रास्फीति (Inflatable Inflation) (0 -3%)
2. चलती या दौडती हुई मुद्रास्फीति(Moving or Running Inflation) (3 % -10 % )
3. उछलती हुई मुद्रास्फीति (Bouncing inflation ) (10%-20%)
4. अति मुद्रास्फीति (Hyperinflation)(20 % and above)
नोट- आंकड़ो का प्रतिशत अर्थव्यवस्था व व्यवसायिक परिदृश्य के अनुसार भिन्न हो सकता है।
- सम्बंधित लेख↴
- बासेल मानक हिंदी में संक्षिप्त जानकारी जाने।
- भारत में बैंकों के प्रकार और बैंकों के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
- भारतीय बैंकों का इतिहास और राष्ट्रीयकरण की महत्वपूर्ण जानकारी।
मुद्रास्फीति के कारण (Cause of inflation)
मांग जन्य स्फीति (Demand Pull Inflation)-
जब समग्र पूर्ति की अपेक्षा समग्र मांग को प्रभावित करने वाले कारक अधिक प्रभावी हो इस प्रकार मांग मूर्ति से हो जाय तो इसे मांग प्रेरित स्फीति कहते हैं। समग्र मांग की वृद्धि मौद्रिक कारकों में वृद्धि से हो सकती है जैसे मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि तथा वास्तविक चरों में परिवर्तन के कारण भी हो सकती है जैसे सार्वजनिक व्यय में वृद्धि या लोगों द्वारा की जाने वाली बचत में कमी। दोनों स्थितियों में मांग प्रेरित स्फीति होगा।
लागत जन्य स्फीति (Cost Pull Inflation)-
लागत में वृद्धि के कारण यदि मूल्य में वृद्धि आये या वस्तुओं की पूर्ति में अत्यधिक कीमत कें कारण मूल्यस्तर में बृद्धि आये तो इस प्रकार की स्फीति को लागत जन्य स्फीति कहते हैं।
वस्तुओं की लागत में बृद्धि भी मूल्यस्तर में तेज वृद्धि ला सकती है। लागत जन्य स्फीति मजदूरी जन्य (Wage Push) तथा लाभ जन्य (Profit Push ) हो सकती है। मजदूरी तथा लाभ दोनों ही लागत के प्रमुख भाग हैं। यदि मजदूर संगठन मजदूरी में बहुत अघिक वृद्धि लाने में सफल हो जायें या बाजार की अपूर्णता के कारण व्यापारी लाभ सीमा बढाने में सफल हो जायें तो लागत जन्य स्फीति हो सकती है। सामान्यतया दोनों स्फीति मांग जन्य तथा लागत जन्य साथन्साथ चलते हैं।
मुद्रास्फीति के प्रभाव (Effects of Inflation)↴
प्राय: यह सभी सोचते हैं कि मुद्रास्फीति एक दुर्दशा है, परन्तु ऐसा हमेशा आवश्यक नहीं है। मुद्रास्फीति अलग-अलग लोगों को अल्ला-अलग तरह से प्रभावित करती है। यह इस पर निर्भर करता है कि मुद्रास्फीति प्रत्याशित है या नहीं। यदि मुद्रास्फीति की दर अहि ध्दकतर लोगों द्वारा पूर्वानुमानित (पुर्वलक्षित‘) हैं, तो हम इसकी भरपाई कर सकते हैं और लागतें नहीं बढती है।
उदाहरण के तौर पऱ- बैंक अपनी दर परिवर्तित कर सकते हैं तथा मजदूर ऐसी संविदा कर सकते हैं, जिसमें कीमत बढ़ने पर मजदूरी में स्वत: वृद्धि हो जाये।
समस्या तब उत्पन्न होती हे जब मुद्रास्फीति अप्रत्याशित होती हैं-
यदि ऋणदाता सही मुद्रास्फीति का अनुमान न लगा पाये तो ऋणदाता को हानि तथा ऋणी को लाभ होता है। जो लोग उधार लेते है उनके लिए यह ब्याज रहित ऋण कं समान है। आगे क्या होगा, इस बात की अनिश्चितता उपभोक्ताओं व निगमों के व्यय को कम करती है जो लम्बी अवधि में अर्थव्यवस्था में उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
निश्चित आय वर्ग के लोग जैसे अवकाश प्राप्त व्यक्तियों की क्रय शक्ति में कमी से उनकं जीवन स्तर में गिरावट आती है। पूरी अर्थव्यवस्था को पुनर्मूल्यन लागत (मीनू लागत) को वहन करना पडता है क्योंकि मूल्य सूची, लेबल, मीनू तथा अन्य चीजों को अपडेट करना पडता है। यदि मुद्रास्फीति की दर अन्य देशों से अघिक है तो घरेलू उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कम हो जाती है। समय के साथ निवेश का मूल्य क्षीण होता जाता है। असमान मुद्रास्फीति वैश्विक बाजार में भारी प्रतिस्पर्धा उत्पन्न कर छोटी अर्थव्यवस्थाओं के अस्तित्त्व पर खतरा हो सकती है।
लोग प्राय: कीमत वृद्धि पर आपत्ति जताते हैं, पर वे इस तथ्य को नकार देते हैं कि मजदूरी भी वढ़ रही है, बल्कि यहॉ प्ररन यह नहीं होना चाहिए कि मुद्रास्फीति वढ़ रही है या नहीँ यह होना चाहिये कि क्या यह मजदूरी से अधिक तीव्र गति से बढ़ रही है। मुद्रास्फीति इस बात का संकंत है कि अर्थव्यवस्था विकास कर रही है। कुछ परिस्थितियों में, थोडी मुद्रास्फीति (अथवा अवस्फीति) उतनी ही बुरी हो सकती है जितनी कि उच्च मुद्रास्फीति। इस प्रकार हम देखते हैं कि मुद्रास्फीति को अच्छा या बुरा कहना "इतना आसान नहीं है, यह पूरी अर्थव्यवस्था व आपकी व्यक्तिगत स्थिति पर निर्भर करता है।
मुद्रास्फीति की माप (Measurement of Inflation )↴
मूल्यस्तर में परिवर्तन की दर ही मुद्रास्फीति की दर प्रदर्शित करती है। एक ऐसी अर्थव्यवस्था में जो पूर्ण रोजगार में है, (अर्थात् उत्पादन की वृद्धि अधिकतम हो चुकी है) मुद्रा की मात्रा में प्रत्येक वृद्धि मूल्यस्तर में अनुपातिक वृद्धि लाती है अर्थात् यदि मुद्रा की पूर्ति में 5०/० की वृद्धि हो तो मूल्यस्तर में भी 5% की वृद्धि होगी, ऐसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति की वृद्धि दर स्फीति की दर प्रदर्शित करेगी।
किसी भी अर्थव्यवस्था में स्फीति की दर के नापने के सामान्यता दो तरीक में लाये जाते हैं।
(A) मूल्य सूचकांक (PIN) में विभिन्न वर्षो में प्रतिशत परिवर्त्तन।
(B) GNP या GDP अवस्फीतक (Dflator) में परिवर्तन
(C) मूल्यस्तर में परितर्वन की माप कं लिए मूल्य सूचकांक (Price Index- PIN) का प्रयोग कस्ते हैं इसलिए हमयह कह सकते हैं कि मूल्य सूचकांक स्फीति की दर के माप का तरीका है । इसके लिए हम विभिन्न अवधियों में PIN में होने वाले परिवर्तन ज्ञात हैं।
इसके अनुसार-
PIN केतीन रूप हो सकते हैंथोक मूल्य सूचकांक (Whole sale Price Index- PIN), औद्योगिक श्रमिकों ककेलिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) तथा कृषि श्रमिकों कं लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) पर तीनों विधियों मॅ स्फीति दर को गणना सूत्र ऊपर वाला ही होता है, अन्तर केवल PIN स्वभाव का होता है।
थोक मूल्य सूचकांक का संकलन उद्योग मंत्रालय मै आर्थिक सलाहकार कार्यालय में साप्ताहिक स्तर पए होता है। पहला थोक मूल्य सूचकांक जनवरी 10, 1942 से शुरू होने वाले सप्ताह से शुरू हुआ जबकि आठ ग़र वर्ष 1939 = 100 लिया गया। एस. आर. हाशिम की अध्यक्षता में गठित कार्यदल जिसने अपनी रिपोर्ट 1999 में दी, की संस्तुति पर थोक मूल्य सूचकांक कं आधार वर्ष को 1981 -82 से हटाकर 1 99 3 -94 का दिया गया, 1989 में आधार वर्ष को 1981-82 स्वीकार किया गया था। इस्री कार्यदल क सुझाव पर थोक मूल्य सूचकांक में वस्तुओं की संख्या 447 से घटाकर 435 कर दी गयी।
अभिजीत सेन पैनेल की 2008 में प्रस्तुत रिपोर्ट को संस्तुतियों को क्रियान्वित करते हुए थोक मूल्य निर्देशांक (WPI) में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्त्तन किए गए हैं -
(ⅰ) अब WPI का आधार वर्ष 1993-1994 के स्थान पर 2004-2005
(ⅱ) थोक मूल्य अब मासिक आधार पर प्रदर्शित होगा जो अबतक साप्ताहिक होता था।
(ⅲ) वर्तमान में इसमें कूल 676 वस्तुएं शामिल हैं।
(ⅳ) प्राथमिक वस्तुओं क अन्तर्गत पुराने सूचकांक 98 की तुलना में नये सूचकांक में 102 वस्तुएं शामिल है, जबकि ईधन शक्ति व स्नेहक की श्रेणी में 19 वस्तुएं शामिल हैं । विनिर्मित उत्पादों की श्रेणी में 318 के स्थान पर इसमें 555 वस्तुएं शामिल हैं।
(ⅴ) नयी व्यवस्थाके बावजूद भी संवेदनशील प्राथमिक वस्तुओ और ईंधन सामग्री के थोक मूल्य सम्बन्धी आंकडे साप्ताहिक आधार पर जबकि विनिर्मित वस्तुओं कं थोक मूल्य सम्बन्धी आंकडे मासिक आधार पर इवदठा किए जायेंगे।
ऐसा माना जाता है कि स्फीति सम्बन्धी मासिक आंकडे या निर्देशांक मौद्रिक नीतिके क्रियान्वयन के लिए स्फीति स्पष्ट करेगा जबकि स्फीति सम्बन्धी क्रियान्वयन के लिए स्फीति स्पष्ट करेगा जबकि स्फीति सम्बन्धी साप्ताहिक आंकडे अल्पकालिक मांग पूर्ति सम्बन्धी मुददों क प्रबन्ध में मदद करेंगे।
उल्लेखनीय है कि CPI-UNME, CPI-IW, CPI-AL तथा CPI-RL (अर्थात् ग्रामीण श्रमिक) सभी उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक हैं । इन सभी को अन्तर्राड्रीय श्रम संगठन के मानकों तथा निर्देशों के अनुसार तैयार किया जाता है। CPI-UNME सीं.एस.ओ. द्वारा तैयार तथा जारी किया जाता है जबकि शेष तीन को श्रम मंत्रालय के ब्यूरो द्वारा तैयार तथा जारी जाता है। इनमें CPI-IW सबसे प्रचलित सूचकांक है क्योंकि मजदूरी के सूचीकरण (INDEXATION) के लिए इसका प्रयोग सरकार तथा संगठित क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
New Series of Wholesale Price Index-
थोक मूल्य निर्देशांक (Wholesale Price Index-WPI), औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक (CPI-IW) तथा कृषि श्रमिकों कं लिए उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक (CPI-AL) पर तीनों विधियों में स्फीति दर की गणना सूत्र ऊपर वाला ही होता है, अन्तर केबल 131 क्या के स्वभाव का होता है।
Wholesale Price Index का संकलन उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार कार्यालय में साप्ताहिक स्तर पर होता है । पहला थोक मूल्य सूचकाश्क जनवरी 10, 1942 से शुरू होने वाले सप्ताह से शुरू हुआ जबकि आधार वर्ष 1939=100 लिया गया। एस. आर. हाशिम की अध्यक्षता में गठित कार्यदल जिसने अपनी रिपोर्ट 1999 में दी, की संस्तुति पर थोक मूल्य सूचकांक के . आधार वर्ष को 1981 -82 से हटाकर 1 99 3 -94 कर दिया गया, 1989 में आधार वर्ष को 1981 -82 स्वीकार किया गया था। इस्री कार्यदल कं सुझाव पर थोक मूल्य सूचकांक में वस्तुओं की संख्या 447 से घटाकर 435 कर दी गयी।
उत्पादक मूल्य सूचकांक (producer price Index→PPI)
सरकार कूछ वस्तुओं जैसे एलपीजी, बिजली आदिके मूल्य को नियमित करने के लिए सब्सिडी देती है तथा
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा नियमित करती है, इसक परिणामस्वरूप भी अर्थव्यवस्था में स्फीति का
सही चित्र नही सामने आता।
अभिजीत सेन कार्यदल ने उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI) के संकलन का भी निर्णय लिया है जिसका उददेश्य थोक मूल्य सूचकांक के स्थान पर PPI को अपनाना है। पीपीआइं में मूल्य परिवर्तन को उत्पादकों के परिप्रेक्ष्य में मापा जाता है जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों में इसे उपभोक्ता के परिप्रेक्ष्य में मापा जाता है। अनेक देशों ने WPI के स्थान PPI को अपना लिया है। PPI के संकलन के लिए केबल आधार (BASE) कीमतों का प्रयोग किया जाता है जबकि करों, व्यापार मार्जिन तथा परिवहन लागतों को शामिल नहीं किया जाता । मुद्रा स्फीति के नापने का यह बेहतर तरीका नाना जाता है क्योंकि इसवठे पहले कि मूल्य परिवृर्तन तेयार वस्तु स्टेज में सम्मिलित हो प्रारम्भिक एवं मध्यवर्ती चरण में ही इसका पता लगाया जा सकता है। मुद्रा स्फीति के मापन के अतिरिक्त पीपीआइं का प्रयोग सकल घरेलू उत्पाद के संकलन मॅ अवस्फीतिकारक (DEFLATOR) कं रूप में भी किया जा सकता है। वाणिज्य मंत्रालय इसे तैयार करने के लिए आंकडे इवदृठा कर रहा है।
◾ एक नजर↴
यह पोस्ट आपको कैसी लगी हमे comment box में
comment करके जरूर बताये। नवीनतम पोस्ट की जानकारी के लिए हमारे ब्लॉग को Subscribe
करे।
Bhut qcchA
ReplyDeleteDefinition of inflation is so good.
ReplyDelete